Sunday, September 16, 2012

एक बया की आत्मकथा
पिछले ८ दिनो से नर बया तिनका जमा करके घोसला बनाने की कोशिश कर रहा है| इस बार वह एक साथ ४ घोसला बनाएगा, कोई न कोई मादा को तो पसंद आ ही जाएगा| रात भर वह नई नई तरकीब सोचता है ताकि ज्यादा से ज्यादा खूबसूरत घोसला बना सके| पिछले ३ बरसों से उसका किसी भी मादा से मिलन नहीं हो पाया है| अब उसकी जवानी ढलने लगी है| उसे अपने वंश की चिंता सताने लगी है| कैसे बढ़ेगा उसका वंश अगर उसके बच्चे नहीं होंगे, कोई नाम लेने वाला भी तो होना चाहिए| उसके बाद उसका नामोनिशान मीट जाएगा क्या| नहीं वह और मेहनत करेगा और अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाएगा| इस बार घोसले के लिए उसने एक मकान के बाजू वाला पेड़ चुना है | पिछले साल तेज आँधी मे उसके घोसले उड गए थे| आंधीओं का क्या भरोसा? इस बार वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहता| वह मन ही मन सोचता है मुआ आँधी भी मुझ गरीब का ही घर उजाड़ता है, इन्सानो की हवेलियाँ उड जाए मेरी बला से| इन इन्सानो ने जीना दूभर कर दिया है| अब हमारी जाति के लोग बचे ही कितने हैं? वंश आगे बढ़ना चाहिए, नाम रहना चाहिए| अब उसका घोसला आधा बन गया है| वह मादा को दिखा सकता है की उसमे काविलियत है| उसे अपनी जवानी के दिन याद आ गए| सबसे ऊपर और सबसे तेज वही तो उड़ता था| इस बार सबकुछ ठीक ठाक रहा तो २ बच्चे करेगा वह| एक घोसले पर उसका दिल आ गया है| मन ही मन सोचता है इसे ही पूरा करूंगा| कल जाएगा वह मादा को बुलाने| उसे पास के घर की सुनहरे रंग वाली मादा बहुत पसंद है| पिछले साल वह किसी और के पास चली गई थी, कितना दर्द हुआ था उसे| इस बार कहीं नहीं जाने देगा वह, इसता सुंदर तो घर है क्यों नहीं आएगा पसंद भला और पास मे बाजरे का खेत, इससे अच्छा घर तो इस दुनिया मे कहीं न होगा, जन्नत है जन्नत| वह बार बार अपने घोसले को देखता है और मंत्रमुग्ध होता है| अगले दिन वह मादा को निमंत्रण देता है| मादा खुशी खुशी आती है| उसे थोड़ा डर भी है कहीं मादा ने उसके किसी भी घोसले को पसंद नहीं किया तो? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता काफी मेहनत से बनाया है उसने| फिर मन ही मन एक योजना बनाता है: अगर मादा ने किसी को पसंद नहीं किया तो वह हार नहीं मानेगा फिर से कोशिश करेगा नए सिरे से| मादा सभी घोसले के अंदर जाती है और गौर से देखती है| उसे एक घोसला वाकई पसंद आ जाता है| वह चहक कर नर को गले लगाती है| नर के खुशी का ठिकाना नहीं है| उसे लगा जैसे जन्नत मिल| मैं कहता न था की पसंद कर लेगी| मादा ने वही घोसला पसंद किया जो उसका पसंदीदा था| वाह हमारी पसंद कितनी मिलती है, सच जोड़िया तो आसमान मे बनती हैं| वह सोचता है की अब वह दो दिन आराम करेगा| कितना मेहनत किया है उसने फल भी तो मिलना चाहिए न| फिर उसे लगता है नहीं जल्दी से काम निबटा लेना चाहिए| वह जल्द से जल्द मादा को अपने घर मे देखना चाहता है| तीन चार दिन अगर वह मन से काम करेगा तो काम पूरा हो जाएगा| आखिर हुनर वाला हाथ है उसका| मन गदगद हो उठा| किस्मत ने करवट ली और रात मे तेज हवा के साथ वर्षा होने लगी| वह दूर से अपने घोसले को देखता है और भगवान से दुआ करता है “इस बार बचा लो प्रभु”| वह मन ही मन सोचता है अगर घोसले बच जाएँ तो बाकी के घोसले वो अपने मित्र को दे देगा| उनका भी घर बस जाएगा| थोड़ी भलाई करने मे आखिर बुराई क्या है? तभी उसका एक अर्धनिर्मित घोसला तेज हवा से गिर जाता है| उसकी जान मुह तक आ जाती है| वह निराश होने लगता है, उसकी उम्मीद टूटने लगी है| वह ध्यान से अपने प्यारे घोसले को देखता है जो बार बार हवा की दिशा मे हिचकोले खा रहा है| उसकी नजर पेड़ की डाल को घोसले से जोड़ने वाले संधि स्थल पर टिक जाती है| अगर यह मजबूत हुआ तो नहीं गिरेगा घर उसका| इतना मजबूत तिनका तो डाला है मैंने गिरना नहीं चाहिए| वह दुविधा मे है| अगर घर गिर गया तो वह दुनिया को क्या मुंह दिखाएगा| एक घर भी नहीं बना सकता ढंग से| अपनी प्यारी मादा को क्या जवाब देगा| कैसे मिलेगा उससे? नहीं उससे नहीं मिलेगा| कहीं दूर चला जाएगा जंगल मे| उसकी आंखो मे आंशु आ जाते हैं| अचानक वर्षा रुक गई है| हवा भी धीरे चलने लगी है| उसकी नज़र अचानक घोसले पर पड़ती है| घोसले को अपनी जगह पाकर उसे नई जिंदगी मिलती है| आंशू की एक बूंद फिर से उसके आंख के कोने से निकलते हैं लेकिन इस बार वह मुस्कुरा देता है| उसके सारे दुख दर्द दूर हो गए हैं| नींद उसे अपने आगोश मे ले लेती है| आज मादा के आने का दिन है| सुबह से सैकड़ो बार वह घोसले का मुआयना कर चुका है| काम मे कोई त्रुटि नहीं रहनी चाहिए| वह बार बार अंदर बाहर आता जाता है| इधर उधर निकले तिनके को वापस डालता है| वह मन ही मन सोचता है: कहाँ बैठेगी वह? उसे कोई दिक्कत तो नहीं होगी? उससे ढेर सारी बातें करेगा| वह बताएगा की घर बनाने मे उसने कितनी मेहनत की है? उसे रात की वो कहानी भी बताएगा जब वह रोया था| नहीं नहीं ये ठीक नहीं है, मर्द होकर रोया था छिः क्या सोचेगी वह| नहीं रोने वाली बात नहीं बताएगा, बस कह देगा की उसे थोड़ी चिंता हुई थी| मादा आती है| उसे वह आराम से बैठने देता है काफी दूर से आई है, थक गई होगी| खाना देता है, बाजरा, फिर बातें शुरू करता है| वह बताता है की यहाँ खाने की कोई कमी नहीं है, दूर दूर तक बाजरे के खेत हैं, उसे वह आश्वस्त करना चाहता है की उसे यहाँ कोई दिक्कत नहीं होगी| एक सप्ताह के मिलन से मादा गर्भवती हो जाती है| नर की चिंता और बढ़ जाती है| वह अब ज्यादा दाने लाएगा| ऐसी हालत मे ज्यादा भोजन चाहिए| वह मादा को बार बार हिदायत देता है ज्यादा मत घूमो ऐसी हालत मे घूमना ठीक नहीं| मादा हंस देती है| नर शर्मा जाता है, उसे लाज आती है, बाप बनाने वाला है वह बाप| आज दिन पूरे हो गए हैं, अंडे देगी वह| दर्द से उसका बुरा हाल है| नर के अंदर खुशी और दुख का मिश्रण है| वह सांत्वना देता है की सब ठीक हो जाएगा| मादा ने २ अंडे दिये| अब सब ठीक है| बच्चे निकलने तक वह मादा का पूरा ख्याल रखेगा| कोई काम नहीं करने देगा उसे| एक दिन जब दाना लेकर नर वापस आता है तो देखता है दो छोटे छोटे प्यारे बच्चे हैं| उसकी नजर मादा को ढूंढती है| लेकिन उसे वह आसपास दिखाई नहीं देती है| उसके रगों मे दुख की एक लहर दौड़ जाती है| चली गई शायद अपना काम कर गई वह| उसके दिल मे मादा के लिए बहुत प्यार उमड़ता है| उसकी नजर मे मादा के लिए बहुत इज्ज़त है| वह उसे गले लगाना चाहता है| अब उसे बस यादों के सहारे जीना होगा| फिर बच्चों की तरफ देखता है| उसकी निशानी है ये| अच्छे से पालन पोषण करेगा| उसके प्यार की निशानी| अचानक बच्चों को बाजुओं मे भर लेता है, आंशू की दो बूंद बरबस आंखो से निकल जाते हैं| आंखे बंद है उसकी, बाहें कसी हुई, ज़िंदगी जैसे ठहर सी गई है| विनय कुमार, जयपुर [ हमारे जयपुर कार्यालय के पीछे एक बया रहता है| उसने कठिन परिश्रम करके घोसला बनाया है| यह कहानी उसी से प्रेरित है| हम अक्सर उसका अवलोकन करते थे| एक दिन मन मे विचार आया की उसके इस संघर्ष को लोगों तक पहुंचाना चाहिए| यह मेरी पहली रचना है| आपके विचार सादर आमंत्रित हैं| कृपया अपनी राय अवश्य दें| vinay.kumar@azimpremjifoundation.org ]