Tuesday, October 6, 2020

शुरूआती नौकरीयों की भाग दौड़

अपने दम पर अपने पैरों पर खड़े होने वाले इंसान की खासियत होती है की उनको मेहनत करने की आदत पड जाती है | कॉलेज से निकलने के दौरान इस बात का एहसास अच्छे से हो गया था की मेरा आगे का रास्ता आसान होने वाला नहीं है | लेकिन हम रास्ते की परवाह करने वाले इंसान भी नहीं हैं | उस समय बस किसी तरह एक नौकरी चाहिए थी सच कहूँ तो एक अदद ठिकाना जहाँ रह सकूँ | किसी तरह बैंगलोर में nanolets software में नौकरी मिली और कंपनी ने मुझे काकीनाड़ा आन्ध्र प्रदेश के लिए सुनील के साथ भेज दिया | बैंगलोर से ट्रेन में बैठते ही सुकून तो आया और नए मंजिल के बारे में सोचकर मन व्याकुल भी होने लगा | काकीनाड़ा रेलवे स्टेशन पर कंपनी की और से मदन जी हमें लेने आये थे | नया राज्य और हमें वहां की भाषा (तेलुगु) बिलकुल नहीं आती थी | सुनील हालाँकि NIT तिरुचिरापल्ली में पढ़ा था लेकिन रहने वाला झारखण्ड का था | भाषा की समस्या उसके साथ भी थी | इसलिए मदन जी का साथ आवश्यक था | मदन जी हमें रेलवे स्टेशन से लेकर बस स्टैंड गए | वहां का बस स्टैंड साफ़ सुथरा था लेकिन सभी बसों में सिर्फ तेलुगु में लिखा था जिसे हम पढ़ नहीं सकते थे | मदन जी वहीँ आन्ध्र प्रदेश के रहने वाले थे | एक बस में बैठकर हमलोग काकीनाड़ा से लगभग 25-30 किलोमीटर दूर एक निर्जन स्थान पर उतरे | वहां एक छोटे से ढाबे पर मदन जी ने हमें इडली और नारियल की सुखी चटनी का नास्ता करवाया | फिर guest हाउस लेकर गए | कंपनी का guest हाउस एक ठीक ठाक बड़ा घर था जिसमे 5 - 7 कमरे और बीच में बड़ा हॉल था | मुझे और सुनील को एक कमरा मिल गया | तो nanolets software का मामला यह था की हमें कंपनी की ओर से घर मिल गया था | उसी घर में कंपनी के 6 - 7 लोग और रहते थे | आंटी जी खाना बना देती थी | कंपनी का एक कॉलेज (काकीनाड़ा इंस्टिट्यूट of इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी) के साथ करार था | हम कंपनी के लोग उसी कॉलेज के कंप्यूटर सेंटर में बैठते और काम करते थे | guest हाउस से कॉलेज लगभग 20-25 किलोमीटर दूर था | रोज नाश्ता करके हमलोग कॉलेज जाते और खाना खाने वापस आते | खाना खाकर पुनः कॉलेज जाते | शाम को लगभग 5 बजे वापस guest हाउस | कंपनी में हमे सरिता जी मेंटर मिली थी | वह हमें रोजाना प्रोग्राम लिखने के लिए देती और हमसब कोडिंग करते रहते | काम ठीक ही समझ में आ रहा था | जैसा सोचा था वैसा ही था | guest हाउस में ढेर सारे कंप्यूटर पड़े थे | कभी कभी रात में भी काम कर लिया करते थे | सबसे बड़ी समस्या खाने की थी | आंटी जी रोज चावल बना देती थी | उन्हें हमारी भाषा आती नहीं थी | सप्ताह में सिर्फ एक दिन रोटी बनता था | मेरा पेट अक्सर ख़राब रहने लगा | मैं दोनों समय सिर्फ चावल नहीं खा सकता था | वहां से लगभग 10 किलोमीटर दूर यानम जगह थी जो pondicherry का एक जिला है | वहां गोदावरी नदी बहती है और बहुत ही खुबसूरत जगह है | हम अक्सर शनिवार या रविवार को छुट्टी के दिन वहां घुमने जाते थे | office के लोगों के साथ हम एक दो बार फिल्म देखने भी गए लेकिन वहां सिर्फ तेलुगु फिल्म लगती थी वो भी तेलुगु भाषा में | फिल्म में हसी का सीन आने पर सभी हंसते और हम बेवकूफ जैसे उनको देखते थे | कंपनी की या कॉलेज की एक गाड़ी हमें guest हाउस से ले जाती और लाती थी | खाने पिने को छोड़कर बाकी सभी ठीक ठाक था | मदन जी ने एक महीने के बाद मेरी पहली आमदनी 5000 रूपये भी दिए | उस समय मेरी आँखों में आंशु आ गए थे | कॉलेज से निकलने के बाद से अभी तक मैंने लगभग इतने रूपये ही खर्च किये थे | मतलब शुरू में जो 20 हजार मेरे पास था अब उतना वापस हो गया था | अब मैं आगे बढ़ने के लिए तैयार था | 2 से 3 महीनों के बाद ही समस्या शुरू हो गयी | एक ओर तो खाने की समस्या दूसरी ओर कंपनी में कुछ दिक्कत होने लगी | हमें कुछ ज्यादा तो नहीं पता चला लेकिन ऐसा लगा की कुछ गड़बड़ तो है | हमें guest हाउस छोड़कर काकीनाड़ा शहर में हीं एक दूसरा घर दे दिया गया | कुछ दिन बाद हमलोग कॉलेज नहीं जाने लगे और घर से ही काम करने लगे | काकीनाड़ा आने से एक अच्छी चीज हुई थी की अब मैं बैंगलोर या चेन्नई आसानी से जा सकता था | मैंने चेन्नई में medi analytika india pvt ltd कंपनी में बात की | कॉलेज के दौरान एक बार वहां मैं interview के लिए गया था तो मुझे कहा गया था की पहले कॉलेज ख़त्म कर लो | अब मेरा कॉलेज ख़त्म हो गया था | मैंने एक शनिवार को चेन्नई जाकर interview देने का निश्चय किया | interview दिया और मेरा सिलेक्शन हो गया | मुझे लगभग 7 दिन चेन्नई में ट्रेनिंग लेनी थी उसके बाद मुझे delhi में पोस्टिंग मिली थी | दिल्ली आना मेरे लिए लाटरी से कम नहीं था | चेन्नई में एक होटल में मैंने रूम लिया | काकीनाड़ा में मैंने कुछ बताया नहीं था | वहां कोई पूछने वाला भी नहीं था | सुनील भी कहीं और कोशिश कर रहा था या शायद घर चला गया था | चेन्नई में medi analytika कंपनी बायो मेडिकल सामानों की बिक्री और मरम्मत का काम करती है | चेन्नई में रेलवे स्टेशन के पास होटल में मैंने एक कमरा लिया था | पास में ही एक पंजाबी ढाबा था जहाँ मुझे खाना मिल जाता था | adyar में office था जहाँ मैं ज्यादातर लोकल ट्रेन से जाता था | थोड़ी दुरी पैदल चल लेता था | रोजाना शाम को मरीना बिच पर कंपनी के ही एक दोस्त के साथ मैं अक्सर बैठा रहता | उस दोस्त को हिंदी नहीं आती थी | हमलोग अंग्रेजी में ही बात करते थे इससे हमारी अंग्रेजी ठीक होने लगी थी | चेन्नई में ट्रेनिंग ख़त्म हो गयी और मुझे दिल्ली आनी थी | उस दौरान nanolets software से सरिता जी का फ़ोन आया | मैंने उनसे बात तक नहीं की | सुनील ने बताया की वो भी वापस नहीं गया है और लोग सोच रहे हैं की हमलोग कहाँ गए | काकीनाड़ा में मेरा ट्राली बैग रह गया था जिसमे कुछ कपड़े, एक जोड़ी जूता और कुछ किताबें थी | मैं ट्राली लाने भी वहां नहीं गया | शायद ट्रेन का किराया मेरे सामान की कीमत से ज्यादा लगा | दिल्ली में medi analytika कंपनी की ओर से दो कमरे के एक घर था | उमसे मेरे साथ कंपनी का ही एक और साथी आया था | हमलोग मुनिरका में रहते थे | दिल्ली में ही मेरे भैया का भी पोस्टिंग थी | वो खजुरी खास में रहते थे | दिल्ली में मेरा मित्र बादल भी रहता था जिसका मोबाइल का दुकान था | बादल मेरा स्कूल का मित्र था | दिल्ली में आकर मुझे काफी रहत मिली | कंपनी का काम मुश्किल नहीं था | मुझे चेन्नई से फ़ोन आता था की फलां जगह मशीन ख़राब है | मुझे वहां जाकर मशीन ठीक करना होता था | इस दौरान एम्स, jnu, दिल्ली university, चंडीगढ़, iit दिल्ली, iit कानपूर जैसे जगहों पर जाना हुआ | कभी कभी चेन्नई से हमारे सीनियर भी आते थे | जल्दी ही कंपनी का वो दोस्त भाषा की समस्या की वजह से वापस चेन्नई चला गया | मैं कंपनी के फ्लैट में अकेले रह गया | उस समय मुझे महीने का लगभग 7 हजार मिलता था | यात्रा करने के लिए कंपनी से मुझे पैसे मिल जाते थे | दिल्ली के अनुसार इतना पैसा मुझे कम पड़ने लगा था | वही मैं अपने कुछ और दोस्तों से भी मिला | दिल्ली में खर्चे का बहुत रास्ता था कुछ गलत संगती में गलत रास्ते पर भी गया | अधिकांश जगह पर मैंने मशीन को ठीक किया था इससे कंपनी वाले खुश थे | पैसे समय पर मिल जाते थे | एक समस्या जो मुझे समझ में आने लगी वो यह की मुझे बहुत अधिक यात्रा करना पड़ता था | जैसे एक रात को iit कानपूर जाना और दुसरे दिन वहां एक मशीन ठीक करना फिर उसी रात वहां से दिल्ली होते हुए अगले दिन चंडीगढ़ जाना | रिजर्वेशन कभी कभी नहीं भी मिलते थे तो दिक्कत होती थी | कंपनी तो मुझे 3 AC की सुविधा देती थी लेकीन रिजर्वेशन नहीं मिलने के कारण जनरल में भी यात्रा करनी पड़ती थी | दिल्ली एम्स में बायोमैट्रिक्स मशीन और दिल्ली university में फिश टैंक बनाना याद रहेगा | यहाँ दिल्ली में कुछ दिनों में मैं थोडा स्थिर और सहज हो गया | एक बार मैं अपने एक रिश्तेदार से थोड़े पैसे उधार माँगा तो उन्होंने कहा की क्या तुम इतने पैसे भी नहीं कमाते हो | यह बात मुझे अन्दर तक चुभ गयी | हालाँकि उसके बाद मैं थोडा संभलने लगा | पैसों के प्रति मेरी कभी दिलचस्पी नहीं रही थी | लेकिन लगा की थोडा पैसा तो होना चाहिए | इसी दौरान एक दोस्त के साथ मैं कभी कभी interview देने चला जाता था | उस दोस्त को नौकरी की जरुरत थी और मैं भी सोचता था की कोई और बढ़िया नौकरी मिल जाये तो ठीक है | इसी चक्कर में एक दिन IBM गुडगाँव में interview दिया | इत्तेफाक से मेरा सिलेक्शन हो गया | मुझे IBM गुडगाँव में जोइनिंग मिली और नॉएडा 64 में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया | यहाँ मैं CCE कस्टमर केयर executive के पद पर था | सैलरी कुल मिलाकर लगभग 14 हजार| यहाँ मुझे पता चला की एयरटेल अपने कस्टमर केयर सेंटर में जो कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं उसका देखभाल IBM करता है | हमें एयरटेल के कस्टमर केयर सेंटर से फ़ोन आते और हमें उनके समस्या का समाधान करना होता | हार्डवेयर तो ठीक करना आसान था लेकिन software के लिए कुछ निर्धारित उत्तर थे जिसे रटना था | यहाँ मैं बता दूँ की चेन्नई की कंपनी से सच नहीं बताया था | वहां मैंने कहा था की मैं कुछ समय के लिए घर जा रहा हूँ | IBM मुझे घर से आने जाने के लिए कैब की व्यवस्था की थी | हम 5 - 6 लोग एक कैब में आते जाते थे | मैं मुनिरका के पुराने कंपनी के घर में ही रह रहा था | सुबह 7 बजे मुझे तैयार होकर कैब पकड़ना होता तो रात को लगभग 8 बजे मैं वापस आ पाता | खाना पीना ठीक से नहीं हो रहा था | दिन में पराठे या छोले कुलचे खा लेता | रात में उस दोस्त के साथ अक्सर खाना खा लेता | इस तरह से एक सप्ताह बिता और मेरा मन भर गया | IBM का वातावरण मुझे रास नहीं आया | AC में बंद रहना, रट्टा मारना, इंसान से ज्यादा हम मशीन लगने लगे थे | एक सप्ताह में मैंने IBM जाना छोड़ दिया | चेन्नई की कंपनी को मैंने रिपोर्ट किया की मैं वापस आ गया हूँ | एक दो जगह फिर मशीन ठीक कर दिया | मैं दोराहे पर खड़ा था | किस कंपनी में आगे बढूँ कहाँ नहीं जाऊ | मेरी भाभी ने सुझाव दिया की मुझे IBM में जाना चाहिए | एक सप्ताह चेन्नई की कंपनी में काम करने के बाद मैं अपने दोस्त बादल के साथ फिर IBM गया | वहां 3 स्तर की सिक्यूरिटी के बाद हमें प्रवेश मिलता था | मैनेजर ने मुझे डांटा भी और दुबारा ऐसा नहीं करने की शर्त पर मुझे वापस ले लिया | मुझे बताया गया था की यदि बिना बताये छोड़े तो IBM मुझे ब्लैकलिस्ट कर देगा और दुबारा कभी इसमें नौकरी नहीं मिलेगी | एक सप्ताह फिर मैं IBM में काम किया | यहाँ मेरा दम घुटता था | मैंने IBM छोड़ने का निर्णय लिया | ब्लैकलिस्ट होने की परवाह किये बिना मैंने बिना बताये अगले सप्ताह से जाना बंद कर दिया | फिर वही चेन्नई वाली medi analytika में काम चलता रहा | यहाँ मुझे यह भी डर लगता था की मैं चेन्नई वाली कंपनी के घर में रहकर IBM में काम करता हूँ | medi analytika के यात्रा वाले काम से मैं परेशान था कोई ऐसा काम ढूंढ रहा था जहाँ एक जगह बैठकर काम हो | संयोग से मुझे अलवर, राजस्थान के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाने के लिए लेक्चरर बनने का मौका मिला | मैं इसी तरह के काम करना चाहता था | पढ़ाना मेरा पसंदीदा काम है | अलवर जाकर interview दिया और मेरा सिलेक्शन हो गया | बस दिल्ली छोड़कर मैं अलवर आ गया | अलवर में कॉलेज के अन्दर ही मुझे रहने के लिए एक कमरा मिल गया और खाने के लिए मेस में सुविधा थी | खाने रहने का इन्तेजाम हो गया और कुछ पैसे भी मिल जाते थे | बस मैं खुश था | अलवर में पढाना मुझे ठीक लग रहा था | इसके बाद मैं जयादा नौकरी के चक्कर में पड़ा नहीं | एक आध बार सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भरा लेकिन परीक्षा देने गया नहीं | दो साल लगभग मैं अलवर में पढाया | हर तरह के अच्छे बुरे दौर से गुजरा लेकिन जिंदगी लगभग स्थिर रही | सुकून के पल थे | काम का बोझ या दवाब भी नहीं था | लेकिन कॉलेज से बायो मेडिकल ब्रांच जिसमे मैं पढाता था उसमे प्रवेश बंद हो गया था | यानी की मुझे एक दो साल में दूसरी नौकरी ढूंढनी थी | तब मैंने थोड़ी तैयारी की एक एक साथ तीन जगह फॉर्म भरा | बैंक of बरोदा में P. O. , manager के लिए, भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में बायो मेडिकल इंजिनियर के लिए और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन में फ़ेलोशिप के लिए | शुरू के दोनों जगह मेरा लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण के बाद interview में सिलेक्शन नहीं हुआ और मैंने अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन में नौकरी ज्वाइन कर ली | यहाँ मुझे लगभग 9 वर्ष हो गए हैं | इस दौरान रेलवे की परीक्षा भी दिया लेकिन mains में नहीं हुआ | मैंने मान लिया है की मेरी किस्मत में सरकारी नौकरी नहीं है | कोई विशेष मलाल तो नहीं है | अब कुछ अपने दम पर करना चाहता हूँ और जल्दी ही करूँगा | नौकरी की तलाश और भाग दौड़ अब छोड़ दी है | हाँ कभी कभी इधर उधर कोशिश करना जारी रखा है क्योंकि समय का कोई भरोसा नहीं है कब आपको अपनी काबिलियत दिखाने की जरुरत पद जाये | लेकिन जीवन में एक ठहराव और शांति है | खाने को दो रोटी, सुकून की नींद, किराये का हीं सही एक छत है बस मुझे ज्यादा की कभी इच्छा रही नहीं | लेकिन अब घर जाने का मन होता है | बचपन से हीं अपने गाँव से बाहर रहा हूँ | सिख ये मिली की नौकरी जरूरी तो है लेकिन सबकुछ नहीं है | हम यदि परिवार और दोस्तों का साथ सहयोग लेते रहे तो खाने पीने लायक तो कमाया जा सकता है | एक और सीख जो मिली वो है अपनी कमजोरी पर विजय पाना | थोड़े पैसे जमा कर रहा हूँ यही समय पर काम आयेंगे | बाकी सब ऊपर वाले के हाथ में हैं |

Sunday, October 4, 2020

कॉलेज के वो आखिरी दिन

कॉलेज के दिन दोस्ती, मस्ती, पढाई और आनंद का होता है | इंजीनियरिंग के चार साल ऐसे ही बीते | जून 2009 में मेरा कॉलेज ख़त्म होने वाला था | आखिरी दिन का निर्धारण अंतिम वर्ष के प्रोजेक्ट कार्य का मौखिक से होना तय था | मेरे अधिकांश दोस्तों का किसी न किसी कम्पनी में नौकरी लग चुकी थी | जिनका नंबर मुझसे कम था उन्हें भी नौकरी लग चुकी थी | मुझे लगभग 7.5 / 10.0 (CGPA) नंबर मिले थे लेकिन नौकरी नहीं मिली | कक्षा 12 के बाद 4 साल का गैप काबीलियत पर भारी पड़ रहा था | कॉलेज के आखिरी दिनों में किसी से मिलने का मन नहीं होता था | जो भी मिलता नौकरी के बारे में हीं पूछता | हर दोस्त का किसी न किसी कंपनी में नौकरी लगी थी और मैं उन सबसे नजरें चुराने लगा | फोटो session के दौरान मैं वहां जाना उचित नहीं समझा | ऐसा लगता था हर कोई पूछ रहा है अब क्या करोगे ? कहाँ जाओगे ? क्या नौकरी नहीं लगी | आये दिन दोस्तों के नौकरी लगने और कॉलेज ख़त्म होने की पार्टी हो रही थी | लेकिन मुझे नौकरी लगी नहीं थी और कॉलेज ख़त्म होने की मुझे ख़ुशी थी नहीं | मम्मी पापा को मैंने कॉलेज के दौरान ही खो दिया था | घर में कुछ था नहीं | इंजीनियरिंग करके खाली घर में वापस आना लगभग असंभव जैसा काम था | एक दिन मैंने भी ब्लू वाटर पब की पार्टी में दारू पी ली | मैं ख़ुशी में नहीं बल्कि अपना दुःख भुलाने के लिए पिया था | मेरे पास लगभग 20 हजार रूपये थे और यही मेरी कुल जमा पूंजी थी | मैंने तय किया था की इतने पैसे से कुछ करना है वरना क्या होगा कुछ पता नहीं | जिंदगी में आगे बढ़ने का बहुत कुछ समझ में आ नहीं रहा था | कोई न समझाने वाला था न सुनने वाला | परिवार से दुरी बढ़ गयी थी दोस्त सभी एक एक करके कॉलेज से जा रहे थे | ऐसा लगता था की जिंदगी यहाँ आकर अचानक रुक गयी है | मुझे अपनी समस्या का अहसास था इसलिए कुछ समय पहले से बैंगलोर और चेन्नई में कोशिश करने लगा था | इंजीनियरिंग के बाद या तो कॉलेज से नौकरी मिलने वाले थे या कॉलेज के बाहर कंपनी में सीधे जाकर | कुछ कंपनियों ने कहा था की कॉलेज डिग्री पहले पूरी करो फिर देखेंगे | कॉलेज में तो नौकरी मिली नहीं थी बाहर दुनियाँ बहुत बड़ी थी | कहाँ जायें क्या करें अजीब सा उहापोह था | कॉलेज के हॉस्टल के 10 ब्लॉक में मैं रहता था कमरा संख्या 1147 में | जिस दिन प्रोजेक्ट कार्य का मौखिक हो गया उस दिन के बाद तो मेस में खाना भी नहीं खाया जा रहा था | आधे अधूरे मन से no due की fomrality कुछ कुछ किया जैसे लाइब्रेरी में और फिर छोड़ दिया | जिस कॉलेज में मैंने 4 साल बिताये थे वहीँ ऐसा लग रहा था की मैं बिन बुलाये मेहमान हूँ | हर आंख मेरी ओर हीं घूरती सी लगती थी | ऐसा लगता था की हर व्यक्ति पूछ रहा है की यहाँ क्यों हो | उसी दौरान मैंने बैंगलोर की एक सॉफ्टवेर की कंपनी nanolets software में walkin के लिए जाना तय किया | walkin interview एक तरह से भीड़ होती है जिसमे सैकड़ों लोग 2 - 4 पोस्ट के लिए संघर्ष करते हैं | मैं मणिपाल से एक बैग लेकर बैंगलोर interview के लिए निकल पड़ा | मुझे हॉस्टल खाली करना चाहिए था लेकिन बिना किसी अन्य ठिकाने के कैसे खाली करता | मणिपाल से रात भर की बस की यात्रा करके बैंगलोर में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ गया | सुबह फ्रेश होकर मैं interview के लिए ऑटो लेकर गया | वहां काफी भीड़ थी | एक लिखित परीक्षा हुई | फिर कुछ देर का ब्रेक मिला | शाम को कुछ लोगों को interview के लिए बुलाया गया | मेरा interview का समय लगभग 4 बजे का था | interview लगभग 5 बजे तक सभी का ख़त्म हुआ और बताया की आप लोगों का रिजल्ट मेल पर भेज दिया जायेगा | जो लोग सफल होंगे सिर्फ उन्ही को शाम को 8 बजे तक मेल आना था | मैं वहां से अपने रिश्तेदार के यहाँ रूम पर वापस आने के लिए बस लिया | पैसे बचाना उस समय का सबसे बड़ा उद्देश्य था | वापसी में रिश्तेदार के रूम पर जाने से पहले मैं बस से उतरकर एक साइबर कैफ़े में रिजल्ट देखना चाहता था | उस समय इन्टरनेट के लिए सायबर कैफ़े ही एकमात्र बिकल्प था | फ़ोन पर इन्टरनेट नहीं होता था | शाम को 7 बजे थे | एक घंटा इधर उधर घुमा फिर 8 बजते ही सायबर कैफ़े में जाकर रिजल्ट देखा | मुझे सफल घोषित किया गया था | अगले दिन से 9 बजे मुझे जाना था | मैं अब रिश्तेदार के रूम पर थोडा मन में संतोष के साथ गया | वास्तव में ये रिश्तेदार अपने कुछ दोस्तों के साथ रहते थे | सभी लोग मणिपाल में हीं पढ़े थे और हमसे एक साल सीनियर थे | सभी अच्छी कंपनियों में नौकरी कर रहे थे | एक रूम एक था और एक हॉल था जिसमे तीन लोग रहते थे | एक रूम में रहते थे और दो लोग हॉल में | मैं भी उनके साथ हॉल में हीं सोने लगा | एक व्यक्ति खाना बनाने आता था | मेरी कंपनी थोड़ी दूर थी और मुझे बस से जाना होता था तो मैं सुबह जल्दी बिना कुछ खाए पिए हीं निकल जाता था | सुबह लगभग 7 बजे निकलता था और शाम को लगभग 7:30 से 8:00 बजे के आसपास पहुँचता था | दोपहर में कुछ हल्का खा लेता और रात में सबके साथ ठीक ठाक खाना मिल जाता था | मेरी कुछ आमदनी तो थी नहीं इसलिए घर के राशन में मेरा योगदान नहीं था |पैसे बचाने के लिए मैं अक्सर दोपहर में खाना नहीं खाता था | चाय समोसे या पकोड़े से किसी तरह पेट भर लेता था | तीन चार दिन ऐसे ही चलता रहा | एक दिन (शुक्रवार को) मुझे office में बुलाकर बताया गया की मुझे रविवार को सुनील के साथ काकीनाड़ा, आंध्र प्रदेश जाना है | मेरा फाइनल सिलेक्शन हो गया था | दोहपर में office के बाहर दोस्तों से पता चला की हम 11 लोग ट्रेनिंग कर रहे थे उसमें से सिर्फ 2 लोगों का फाइनल सिलेक्शन होना था | एक सुनील का नाम था और एक किसी और साथी का | उस साथी का अचानक किसी और कंपनी में सिलेक्शन हो गया था इसलिए उसके स्थान पर मुझे सेलेक्ट किया गया था | बैंगलोर से काकीनाड़ा के लिए ट्रेन सुबह 8:30 बजे की थी | सुनील ने मुझे ट्रेन का नाम, नंबर और रिजर्वेशन का सीट नंबर बता दिया था | टिकेट भी सुनील और उस साथी के नाम से था | मुझे लम्बे समय के लिए काकीनाड़ा जाना था जहाँ nanolets software का काम होता था | मुझे अब मणिपाल में अपना रूम खाली करना था | मैं अपने रिश्तेदार के घर गया | सामान पैक किया और मणिपाल के लिए रात में बस पकड़ लिया | मैंने थोड़ी कामयाबी पा ली थी | अब मेरे पास किसी तरह एक नौकरी थी | रहने का एक ठिकाना जो लगभग तय था | मैं शनिवार सुबह मणिपाल गया तो सबकुछ अजीब लग रहा था | कॉलेज अब मेरा नहीं लग रहा था | किसी तरह रूम का सामान जिसमे मुख्य रूप से एक कंप्यूटर और एक ट्रोली बैग था | कंप्यूटर एक दोस्त को दिया और बताया की बाद में मेरे भैया के पास रांची कूरियर कर दे | मणिपाल से उसी शाम को बैंगलोर के लिए बस लिया | रविवार को सुबह बस मुझे 6 बजे के आसपास बैंगलोर पहुँचाने वाली थी और वहां से ट्रेन पकड़ना था | जो लोग बैंगलोर गए हैं उनको पता होगा की वहां majestik बस स्टैंड रेलवे स्टेशन के पास ही है | जून में वहां बारिश बहुत होती है और बस थोड़ी लेट हो गयी | बस लगभग 8 बजे बैंगलोर शहर पहुंची | ड्राईवर ने बताया की 8 बजे के बाद शहर में प्राइवेट बस की एंट्री नहीं होगी | इसलिए मुझे कुछ दूर ऑटो से जाना था | लगभग 8 - 9 किलोमीटर की दुरी और ऑटो का सफ़र | सोचने का ज्यादा समय था नहीं | ऑटो लेकर रेलवे स्टेशन पहुंचा | समय लगभग 8:30 हो चुकी थी | मेरी ट्रेन 4 नंबर प्लेटफार्म से खुल रही थी | भागते हुए प्लेटफार्म नंबर 4 पर पहुंचा तो देखा ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी थी | भागकर मैं भी ट्रेन पकड़ लिया | थोड़ी राहत की साँस ली और सुनील को ढूंढा | पहली बार रिजर्वेशन से यात्रा करने वाला था | एक नयी मंजिल की ओर | कॉलेज के दिन ख़त्म हो गए थे | एक नयी दुनिया थी जिसे देखना था | जानपहचान की दुनिया से दूर एक अंजान राह पर | ट्रेन बैंगलोर शहर से बाहर निकल चुकी थी |