Thursday, March 26, 2020
कोरोना के डर के बीच का जीवन
Wednesday, March 18, 2020
आज का अभिमन्यु
अनजान रास्तों पर अंधे की तरह चलते रहने का नाम ही जिंदगी है | यह कहानी मेरी और मेरे दोस्त संजय की है | मेरा और संजय का घर गाँव में बिलकुल पास में है | हमारा बचपन साथ में गुजरा | हम दोनों की आर्थिक हालत में ज्यादा अंतर नहीं था | जहाँ तक मुझे याद है बचपन में हम कपड़े भी लगभग एक जैसे ही पहनते थे | पुरानी फटी हाफ पैन्ट के साथ पुरानी बनियान | कपड़े इतने कम ख़रीदे जाते थे की ऐसा लगता था साल भर हम पुराने कपड़े ही पहने हुए हैं | कक्षा 5 तक हम दोनों साथ में पढ़े, उसके बाद मेरा नवोदय में चयन हो गया | उसने पिता की मृत्यु के कारण पढाई छोड़ दी और परिवार के पुस्तैनी कृषि कार्य में लग गया | इस तरह से हम दोनों ने जिंदगी की जंग में अलग अलग रास्ते पर चलना शुरू कर दिया | दूरियों और व्यस्तता के कारण हम ज्यादा मिल नहीं पाए | अब वह एक किसान है और मैं .... |
जब मैं गाँव जाता हूँ तो हम दोनों आपस में बहुत सारी बातें करते हैं | जिंदगी का लेखा जोखा करते हैं | किसने क्या पाया और क्या खोया | उससे मिलकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है की इतने किसान आत्महत्या कर सकते हैं जितना समाचार में दिखाया जाता है | अब हमारे आर्थिक स्थिति की तुलना करना मेरे लिए आसान है, उसके लिए मुश्किल | लोगों को लगता है की मेरी जींस उसके पुराने पैंट से ज्यादा साफ़ है | उसे लगता है मैं अपनी जिंदगी से बहुत खुश हूँ | मेरे पास बहुत सारे पैसे हैं | मैं बहुत अच्छी ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा हूँ | इंसान जैसा स्वयं होता है दूसरों के लिए वैसा ही सोचता है |
वह खुलकर बोलता है की उसके पास बहुत सारे पैसे नहीं हैं | पिछले साल चाची की बीमारी में 5000 रूपये कर्ज लेना पड़ा था जो मटर की खेती से किसी तरह चूकाया | मैंने अपने क्रेडिट कार्ड के बारे में बताया जिससे हर महीने 5 से 10 हजार रूपये कर्ज लेता हूँ | मेरी बातों पर उसे यकीन नहीं होता है | जब मैंने कहा की हम सब की जिंदगी एक जैसी ही है तो वो बोला की तू पढ़ लिख के बातें बनाने लगा है |
एक बार हमारी बातें लम्बी चली | मैंने भावनाओं में बहकर अपनी जिंदगी का सारा कच्चा चिट्ठा खोल दिया | मेरी नौकरी, मेरा काम, मेरी चिंता, मेरा परिवार, मेरी मजबूरियाँ, मेरा दोहरा चरित्र, मेरी समस्याएं, सब कुछ | वो अवाक् मेरी ओर देखे जा रहा था | अचानक पूछा “अब क्या करेगा” ? मैंने कहा “पता नहीं” | “वापस घर क्यों नहीं आ जाता” ? मैंने कहा “कैसे” ? “तू समझ नहीं रहा है ये सब इतना आसान नहीं है” | दिखावे और आडम्बर के जाल में फंसा मैं आज का अभिमन्यु हूँ | काश की ऊपर लिखी बातें तुझे बता पाता |
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