Friday, November 30, 2018

चित्तौड़गढ़ की एक दुर्घटना और अच्छे लोगों से मिलना


दिनांक 30 नवंबर 2018 आज पूजा घर (बिहार) से वापस चित्तौड़गढ़ आ रही थी | मैं उसे लाने चंदेरिया स्टेशन गया | जाते समय ही एक ऑटो वाले को ले लिया की जाना है और वापसी भी आना है | लगभग 8: 45 बजे शाम में पूजा का ट्रेन आया | उसे लेकर हम ऑटो में बैठे | ऑटो वाले ने कुछ और यात्री को भी बैठा लिया | थोड़ी दूर वापस आने पर ही सड़क पे गड़े पोल से ऑटो टकराकर पलट गया | सारा सामान सड़क पर बिखर गया | पीछे स्कूटी पर आ रही एक आंटी ने आस पास के लोगों को बुलाकर ऑटो को सीधा करवाया तब मैं बहार निकल पाया | पूजा दुसरे तरफ से बहार निकली| मेरे से दुसरी ओर बैठे व्यक्ति का पांव घायल हो गया उससे खून बह रहा था | ऑटो ड्राईवर के सर में गहरी चोट लगी थी | लेकिन वो शायद डर के मारे ऑटो सीधा करते ही स्टार्ट करके चला गया | आस पास के लोगों ने एक दूसरा ऑटो करके उस गह्यल व्यक्ति को हॉस्पिटल भिजवाया | हमें एक कार वाले ने कहा की चलिए ऑटो स्टैंड तक छोड़ देते हैं | हम ऑटो स्टैंड गए और वहां से ऑटो लेकर वापस आने लगे | रस्ते में ही सांवलिया हॉस्पिटल पड़ता है | पूजा का पर्स खो गया था | हमें लगा की उस घायल आदमी और उसकी पत्नी के साठ शायद पर्स चला गया होगा| जब हम हॉस्पिटल पहुंचकर देखे तो वो महिला मिली | वो बहुत डरी हुई थी और कुछ भी बोलने से मना की | स्कूटी वाली आंटी ने पहचाना और बताया की जब ऑटो से सामान उतार रहे थे तो ये औरत बोली की ये पर्स मेरा नहीं है | आपका पर्स मेरे पास है | और बेटे को बोली की पर्स लाकर दो इनको | वो सांवलिया हॉस्पिटल के बाल एवं महिला बिभाग में कार्यरत हैं | इस तरह हम किसी तरह घर पहुँच गए | हमारा सारा सामान भी सुरक्षित था | हमें पैर में और सर में थोड़ी चोट लगी गई है | पूजा के गाल में दर्द है शायद चोट लगी है उसे भी | इन सब दुःख दर्द के वावजूद भी सुकून है की कुछ अच्छे लोग मिले | वो कार वाले सर उनको मैं जल्दवाजी में धन्यवाद् भी नहीं कर पाया | वो स्कूटी वाली आंटी जिनकी मदद से हमारा सामान वापस मिला | वो उस आदमी को हॉस्पिटल में इलाज करवाकर ही वापस गयी | इन सब अच्छे लोगों को दिल से धन्यवाद् | विनय

Monday, November 19, 2018

ईमानदारी की एक मिशाल

दिनांक 20 नवंबर 2018 स्थान: चित्तौड़'गढ़ उदयपुर राजमार्ग आज मैं विद्यालय भ्रमण के दौरान चाय पीने के लिए एक छोटी सी टपरी पर रुका | टपरी चाय की छोटी कच्ची दुकान को कहते हैं | मैं यहाँ पहले भी रुककर चाय पी चूका हूँ | बड़े से चित्रकूट रिसोर्ट एवं रेस्टोरेंट के सामने यह होटल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है | जाड़े की धुप में मैं चाय पीकर थोड़ी देर समाचार पत्र देखने लगा | भोजन का समय हो चूका था सो दूकानदार ने कहा की वो खाना खाने घर जा रहा है | दुकान को जैसे का तैसा खुला छोड़कर वह चला गया | जल्द ही एक आदमी नमकीन और गुटखा लेने आया | उसने मुझसे पूछा तो मैंने कहा की दुकानदार तो खाना खाने गया है | वह आदमी नमकीन और गुटखा लिया और पैसे वही रख दिया | इसके बाद एक लड़की आई उसने भी वही किया | एक ग्राहक के पास खुले पैसे नहीं थे तो वो बिना सामान लिए वापस चला गया | लोगों की इमानदारी मैं देख रहा था | एक राजमार्ग पर जहाँ लोग मोटर साइकिल या कार से आते हैं वहां सामान लेकर स्वयं पैसे रखकर चले जाना मुझे आश्चर्य लग रहा था | लोगों की ईमानदारी मुझे पसंद आयी | हम सबको इससे सीखना चाहिए | राजस्थान की इस संस्कृति को नमन |