Sunday, October 4, 2020

कॉलेज के वो आखिरी दिन

कॉलेज के दिन दोस्ती, मस्ती, पढाई और आनंद का होता है | इंजीनियरिंग के चार साल ऐसे ही बीते | जून 2009 में मेरा कॉलेज ख़त्म होने वाला था | आखिरी दिन का निर्धारण अंतिम वर्ष के प्रोजेक्ट कार्य का मौखिक से होना तय था | मेरे अधिकांश दोस्तों का किसी न किसी कम्पनी में नौकरी लग चुकी थी | जिनका नंबर मुझसे कम था उन्हें भी नौकरी लग चुकी थी | मुझे लगभग 7.5 / 10.0 (CGPA) नंबर मिले थे लेकिन नौकरी नहीं मिली | कक्षा 12 के बाद 4 साल का गैप काबीलियत पर भारी पड़ रहा था | कॉलेज के आखिरी दिनों में किसी से मिलने का मन नहीं होता था | जो भी मिलता नौकरी के बारे में हीं पूछता | हर दोस्त का किसी न किसी कंपनी में नौकरी लगी थी और मैं उन सबसे नजरें चुराने लगा | फोटो session के दौरान मैं वहां जाना उचित नहीं समझा | ऐसा लगता था हर कोई पूछ रहा है अब क्या करोगे ? कहाँ जाओगे ? क्या नौकरी नहीं लगी | आये दिन दोस्तों के नौकरी लगने और कॉलेज ख़त्म होने की पार्टी हो रही थी | लेकिन मुझे नौकरी लगी नहीं थी और कॉलेज ख़त्म होने की मुझे ख़ुशी थी नहीं | मम्मी पापा को मैंने कॉलेज के दौरान ही खो दिया था | घर में कुछ था नहीं | इंजीनियरिंग करके खाली घर में वापस आना लगभग असंभव जैसा काम था | एक दिन मैंने भी ब्लू वाटर पब की पार्टी में दारू पी ली | मैं ख़ुशी में नहीं बल्कि अपना दुःख भुलाने के लिए पिया था | मेरे पास लगभग 20 हजार रूपये थे और यही मेरी कुल जमा पूंजी थी | मैंने तय किया था की इतने पैसे से कुछ करना है वरना क्या होगा कुछ पता नहीं | जिंदगी में आगे बढ़ने का बहुत कुछ समझ में आ नहीं रहा था | कोई न समझाने वाला था न सुनने वाला | परिवार से दुरी बढ़ गयी थी दोस्त सभी एक एक करके कॉलेज से जा रहे थे | ऐसा लगता था की जिंदगी यहाँ आकर अचानक रुक गयी है | मुझे अपनी समस्या का अहसास था इसलिए कुछ समय पहले से बैंगलोर और चेन्नई में कोशिश करने लगा था | इंजीनियरिंग के बाद या तो कॉलेज से नौकरी मिलने वाले थे या कॉलेज के बाहर कंपनी में सीधे जाकर | कुछ कंपनियों ने कहा था की कॉलेज डिग्री पहले पूरी करो फिर देखेंगे | कॉलेज में तो नौकरी मिली नहीं थी बाहर दुनियाँ बहुत बड़ी थी | कहाँ जायें क्या करें अजीब सा उहापोह था | कॉलेज के हॉस्टल के 10 ब्लॉक में मैं रहता था कमरा संख्या 1147 में | जिस दिन प्रोजेक्ट कार्य का मौखिक हो गया उस दिन के बाद तो मेस में खाना भी नहीं खाया जा रहा था | आधे अधूरे मन से no due की fomrality कुछ कुछ किया जैसे लाइब्रेरी में और फिर छोड़ दिया | जिस कॉलेज में मैंने 4 साल बिताये थे वहीँ ऐसा लग रहा था की मैं बिन बुलाये मेहमान हूँ | हर आंख मेरी ओर हीं घूरती सी लगती थी | ऐसा लगता था की हर व्यक्ति पूछ रहा है की यहाँ क्यों हो | उसी दौरान मैंने बैंगलोर की एक सॉफ्टवेर की कंपनी nanolets software में walkin के लिए जाना तय किया | walkin interview एक तरह से भीड़ होती है जिसमे सैकड़ों लोग 2 - 4 पोस्ट के लिए संघर्ष करते हैं | मैं मणिपाल से एक बैग लेकर बैंगलोर interview के लिए निकल पड़ा | मुझे हॉस्टल खाली करना चाहिए था लेकिन बिना किसी अन्य ठिकाने के कैसे खाली करता | मणिपाल से रात भर की बस की यात्रा करके बैंगलोर में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ गया | सुबह फ्रेश होकर मैं interview के लिए ऑटो लेकर गया | वहां काफी भीड़ थी | एक लिखित परीक्षा हुई | फिर कुछ देर का ब्रेक मिला | शाम को कुछ लोगों को interview के लिए बुलाया गया | मेरा interview का समय लगभग 4 बजे का था | interview लगभग 5 बजे तक सभी का ख़त्म हुआ और बताया की आप लोगों का रिजल्ट मेल पर भेज दिया जायेगा | जो लोग सफल होंगे सिर्फ उन्ही को शाम को 8 बजे तक मेल आना था | मैं वहां से अपने रिश्तेदार के यहाँ रूम पर वापस आने के लिए बस लिया | पैसे बचाना उस समय का सबसे बड़ा उद्देश्य था | वापसी में रिश्तेदार के रूम पर जाने से पहले मैं बस से उतरकर एक साइबर कैफ़े में रिजल्ट देखना चाहता था | उस समय इन्टरनेट के लिए सायबर कैफ़े ही एकमात्र बिकल्प था | फ़ोन पर इन्टरनेट नहीं होता था | शाम को 7 बजे थे | एक घंटा इधर उधर घुमा फिर 8 बजते ही सायबर कैफ़े में जाकर रिजल्ट देखा | मुझे सफल घोषित किया गया था | अगले दिन से 9 बजे मुझे जाना था | मैं अब रिश्तेदार के रूम पर थोडा मन में संतोष के साथ गया | वास्तव में ये रिश्तेदार अपने कुछ दोस्तों के साथ रहते थे | सभी लोग मणिपाल में हीं पढ़े थे और हमसे एक साल सीनियर थे | सभी अच्छी कंपनियों में नौकरी कर रहे थे | एक रूम एक था और एक हॉल था जिसमे तीन लोग रहते थे | एक रूम में रहते थे और दो लोग हॉल में | मैं भी उनके साथ हॉल में हीं सोने लगा | एक व्यक्ति खाना बनाने आता था | मेरी कंपनी थोड़ी दूर थी और मुझे बस से जाना होता था तो मैं सुबह जल्दी बिना कुछ खाए पिए हीं निकल जाता था | सुबह लगभग 7 बजे निकलता था और शाम को लगभग 7:30 से 8:00 बजे के आसपास पहुँचता था | दोपहर में कुछ हल्का खा लेता और रात में सबके साथ ठीक ठाक खाना मिल जाता था | मेरी कुछ आमदनी तो थी नहीं इसलिए घर के राशन में मेरा योगदान नहीं था |पैसे बचाने के लिए मैं अक्सर दोपहर में खाना नहीं खाता था | चाय समोसे या पकोड़े से किसी तरह पेट भर लेता था | तीन चार दिन ऐसे ही चलता रहा | एक दिन (शुक्रवार को) मुझे office में बुलाकर बताया गया की मुझे रविवार को सुनील के साथ काकीनाड़ा, आंध्र प्रदेश जाना है | मेरा फाइनल सिलेक्शन हो गया था | दोहपर में office के बाहर दोस्तों से पता चला की हम 11 लोग ट्रेनिंग कर रहे थे उसमें से सिर्फ 2 लोगों का फाइनल सिलेक्शन होना था | एक सुनील का नाम था और एक किसी और साथी का | उस साथी का अचानक किसी और कंपनी में सिलेक्शन हो गया था इसलिए उसके स्थान पर मुझे सेलेक्ट किया गया था | बैंगलोर से काकीनाड़ा के लिए ट्रेन सुबह 8:30 बजे की थी | सुनील ने मुझे ट्रेन का नाम, नंबर और रिजर्वेशन का सीट नंबर बता दिया था | टिकेट भी सुनील और उस साथी के नाम से था | मुझे लम्बे समय के लिए काकीनाड़ा जाना था जहाँ nanolets software का काम होता था | मुझे अब मणिपाल में अपना रूम खाली करना था | मैं अपने रिश्तेदार के घर गया | सामान पैक किया और मणिपाल के लिए रात में बस पकड़ लिया | मैंने थोड़ी कामयाबी पा ली थी | अब मेरे पास किसी तरह एक नौकरी थी | रहने का एक ठिकाना जो लगभग तय था | मैं शनिवार सुबह मणिपाल गया तो सबकुछ अजीब लग रहा था | कॉलेज अब मेरा नहीं लग रहा था | किसी तरह रूम का सामान जिसमे मुख्य रूप से एक कंप्यूटर और एक ट्रोली बैग था | कंप्यूटर एक दोस्त को दिया और बताया की बाद में मेरे भैया के पास रांची कूरियर कर दे | मणिपाल से उसी शाम को बैंगलोर के लिए बस लिया | रविवार को सुबह बस मुझे 6 बजे के आसपास बैंगलोर पहुँचाने वाली थी और वहां से ट्रेन पकड़ना था | जो लोग बैंगलोर गए हैं उनको पता होगा की वहां majestik बस स्टैंड रेलवे स्टेशन के पास ही है | जून में वहां बारिश बहुत होती है और बस थोड़ी लेट हो गयी | बस लगभग 8 बजे बैंगलोर शहर पहुंची | ड्राईवर ने बताया की 8 बजे के बाद शहर में प्राइवेट बस की एंट्री नहीं होगी | इसलिए मुझे कुछ दूर ऑटो से जाना था | लगभग 8 - 9 किलोमीटर की दुरी और ऑटो का सफ़र | सोचने का ज्यादा समय था नहीं | ऑटो लेकर रेलवे स्टेशन पहुंचा | समय लगभग 8:30 हो चुकी थी | मेरी ट्रेन 4 नंबर प्लेटफार्म से खुल रही थी | भागते हुए प्लेटफार्म नंबर 4 पर पहुंचा तो देखा ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी थी | भागकर मैं भी ट्रेन पकड़ लिया | थोड़ी राहत की साँस ली और सुनील को ढूंढा | पहली बार रिजर्वेशन से यात्रा करने वाला था | एक नयी मंजिल की ओर | कॉलेज के दिन ख़त्म हो गए थे | एक नयी दुनिया थी जिसे देखना था | जानपहचान की दुनिया से दूर एक अंजान राह पर | ट्रेन बैंगलोर शहर से बाहर निकल चुकी थी |

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