Sunday, May 30, 2021

सुलेखा की माँ

कहते हैं दुःख के बाद सुख आता है और सुख के बाद दुःख| जीवन की वास्तविकता में कभी कभी ये कहावतें गलत हो जाती है| जीवन कष्टों के अंतहीन रास्ते पर चलने लगता है जिसका अंत शायद मृत्यु पर हीं हो| जो कहते हैं की मृत्यु बहुत दुखदायी क्षण है उन्होंने शायद जिंदगी में असली दुःख देखे नहीं है| जिंदगी जब अर्थहीन, आशाविहीन, निरुदेश्य हो जाये तो मृत्यु से अधिक सुख और कौन दे सकता है| गाँव में हमारे पड़ोस में एक चाची रहती हैं रामा चाचा की पत्नी, बारावाली, सुलेखा की माँ| अपने वास्तविक नाम को कहीं खोकर अनेकों उपनाम लिए चाची आज अँधेरे में अपने घर के बाहर बैठी मिली| अँधेरा कई लोगों को अच्छा नहीं लगता लेकिन जिनका पूरा जीवन हीं अधेंरों में कहीं खो गया हो उनको अंधेरों से कैसा भय| सुलेखा की माँ सांवली और सामान्य शक्ल सूरत वाली औरत है| जैसा की गाँव में होता है कम उम्र में हीं उनकी शादी रामा चाचा के साथ हो गयी| शादी के कुछ वर्षों बाद सुलेखा का जन्म हुआ| मुझसे उम्र में बड़ी थी तो हम उन्हें सुलेखा दीदी कहते थे| नियति का खेल देखिये सुलेखा दीदी के बाएँ हाथ में पोलियो हो गया| अपनी अदम्य साहस से या कहें मज़बूरी में उन्होंने दायें हाथ से हीं सारा काम करना सीख लिया| कपड़े धोना, बर्तन, खाना बनाना, घर की साफ़ सफाई सारा काम वो एक हाथ से हीं कर लेती थी| कुछ वर्षों तक पढाई करने स्कूल भी गयी| सुलेखा दीदी की माँ और रामा चाचा में कोई विशेष कहा सुनी, लड़ाई झगड़ा हो ऐसा सुना नहीं कभी| एक दिन अचानक पता चला की रामा चाचा नयी शादी करके आये हैं| नयी वाली चाची को सब नयी चाची कहकर बुलाने लगे| यहीं से सुलेखा की माँ का जीवन नर्क बनने लगा| नयी चाची ने घर में जैसे जैसे अपनी जगह बनानी शुरू की सुलेखा की माँ घर से बाहर होती चली गयी| बजह-वेवजह दोनों में झगडे होने लगे| शायद सुलेखा की माँ अपना सबकुछ लुटता बिखरता देख नहीं पाती थी| नयी वाली चाची को अपना वर्चस्व जमाना था| दोनों में जमकर झगडे होने लगे| रामा चाचा कुछ बोलते तो नहीं थे लेकिन कभी कभी सुलेखा की माँ को पिटते जरुर थे| कुछ वर्षों के बाद सुलेखा दीदी की शादी हो गयी| वो अपने ससुराल चली गयी| अब सुलेखा की माँ अकेली पड़ने लगी| नयी चाची को एक लड़की और एक लड़का हुआ| अब वो सुलेखा की माँ को कुछ नहीं समझती| नए जोश और जूनून से लडती| सुलेखा की माँ धीरे धीरे हार मानने लगी| अब अति होने पर हीं लडती वरना अधिकांश समय चुप हीं रहती| हमारे समाज का नियम भी अजीब है| शक्तिशाली इंसानों के द्वारा बनाया गया नियम हमेशा शक्तिशाली लोगों के पक्ष में होता है| सभी लोग नयी चाची का साथ देने लगे| सुलेखा की माँ समाज के अन्दर लेकिन समाज से कटती चली गयी| अधिकांश समय अकेले और चुप चाप रहती| समाज के लोग उनसे बात करना अच्छा नहीं समझते| उनकी हर बात, उनका हर कार्य लोगों को बेकार और हास्यास्पद लगता| जैसे एक बार उन्होंने पूजा पाठ किया तो लोगों ने उनका नाम नमो नारायण रख दिया| समाज ने बार बार उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाया| भारतीय कानून के अंतर्गत वह आज भी रामा चाचा की असली पत्नी हैं और उन्हें पत्नी के सारे अधिकार मिलने चाहिए| लेकिन विकास से कोसों दूर एक अनपढ़ महिला को देश के कानून से क्या मतलब| दो वक्त की रोटी मिल जाये यही बड़ी बात है| हमने समाज शायद इसलिए बनाया था ताकि कोई व्यक्ति गलत करे तो उसे रोका जा सके, किसी निर्दोष के साथ अन्याय न हो| क्या समाज आज अपने उद्देश्य को प्राप्त कर रहा है| कम से कम सुलेखा की माँ के मामले में तो नहीं| तो फिर इस समाज का क्या मतलब है? आज समाज का काम सिर्फ बारात जाने, शादी, विवाह में भोज खाने हीं रह गया है| किसी के साथ गलत होने पर कोई कुछ नहीं बोलता| सबको अपने मतलब से मतलब है| समाज के आदर्शों का पतन हो गया है जैसे पेड़ के पत्ते पीले पड जाते हैं| हवा का एक झोंका आएगा और इन पत्तों को बिखेर देगा|

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